स्वाभिमान – Short Motivational Story In Hindi
हमें किसी भी परिस्थिति में हमारे स्वाभिमान को हमेशां ऊँचा रखना चाहिए । ये कहानी (स्वाभिमान – Short Motivational Story In Hindi) उसी के बारे में है ।
आपने ये देखा ही होगा की बड़े – बड़े शहरों में सार्वजनिक स्थलों पर कुछ भिखारी अपने कटोरे में पेंसिल, छोटा पॉकेट , बॉल पैन जैसी छोटी-मोटी चीजें रखते है ।
एक दिन एक सज्जन ने एक भिखारी के कटोरे में पांच रूपये का सिक्का डाला , वो सज्जन सिक्का डालने के बाद वही खड़े-खड़े उसके बारे में सोचने लगा , कुछ क्षण के बाद वो सज्जन वहा से आगे चलने के लिए मुड़ा ।
वो जैसे ही आगे चलने के लिए मुड़ा की उस भिखारी ने उस सज्जन इंसान को रोका , भिखारी ने कहा साहब रुकिए , आपने मेरे कटोरे में पांच रूपये का सिक्का तो डाला किन्तु आपने उसमें रखी पैंसिल या बॉल पैन नहीं ली । साहब आपको जो भी पसंद हो वो मेरे इस कटोरे में से ले लीजिए ।
भिखारी की बात सुनकर वो सज्जन इंसान बोला, भाई मेने तो तुम्हे भिखारी समझकर सिक्का दिया है , भिखारी ने कहा नहीं साहब आप उसके बदले में मेरे कटोरे में से कुछ ले लीजिये भले ही क्यों ना वो चीज़ 1 रूपये की हो ।
अब वो सज्जन इंसान असमंजस में पड़ गया की ये भिखारी है या दुकानदार! अब ये सज्जन इंसान भिखारी की तरफ देखकर थोड़ा मुस्कुराया । भिखारी ने उसे कहा की साहब , हालत ने मुझे भिखारी जरूर बना दिया है, लेकिन मेरा थोड़ा-सा आत्म-सम्मान अब भी बचा है ।
साहब अगर आप उस सिक्के के बदले में कुछ भी ले लेंगे तो मुझे कम-से-कम इतना संतोष रहेगा कि भिखारी होने के बावजूद भी मेने अपना स्वाभिमान नहीं खोया है ।
भिखारी की ये बात सुनकर उस सज्जन की आँखें भर आईं ।उस सज्जन इंसान ने अपने पर्स से 500 रूपए का एक नोट निकालकर उस भिखारी के कटोरे में रख दिया और उसके कटोरे में से सारा सामान (जो 100 रूपए से ज्यादा मूल्य का नहीं था) वो सब लेकर उससे पूछा – ‘भईया पांच सौ रूपए कम तो नहीं हैं ?”
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उस सज्जन इंसान की बात सुनकर वह भिखारी कृतज्ञ होकर बोला, “साहब में आपका शुक्रिया किन शब्दों से अदा करूँ ? आप ने तो मेरी जिंदगी में दरिद्रनारायण के रूप में आकर मेरे स्वाभिमान को फिर से ऊँचा कर दिया है, इससे तो मेरी पूरी जिंदगी बदल जाएगी ।
मैं आज ही इन रूप्यों से सुबह और शाम का अखबार बेचना शुरू कर दूँगा और फिर भिखारी बनकर कभी नहीं जिऊंगा ।
इस भिखारी की तरह सभी मनुष्य में आत्म-सम्मान की भावना होती ही है, किसी में कम होती है तो किसी में ज्यादा लेकिन होती जरुरु है ।
ये भिखारी चाहे तो फिर से भीख मांगने का काम कर सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया क्योकि उसने ऐसा सोचा ही नहीं था की में आजीवन भीख मांगने का काम करुगा , हमारी सोच ही हमसे सब करवाती है । हम जैसा सोचते है वैसा बन जाते है ।
हमें हमेशा हमारे स्वाभिमान के बारे में सोचना चाहिए और हमारे स्वाभिमान को हमेशा ऊँचा रखना चाहिए इस भिखारी की तरह ।
हमें अपना जीवन स्वाभिमान के साथ ही जीना चाहिए परिस्थिति चाहे कुछ भी हो ।
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