आत्मिक शांति – Short Moral Story In Hindi
जब हमें बिना मेहनत किये धन प्राप्त होता है तो वैसे धन से हमारे मन में अशांति पैदा होती है, जबकि मेहनत से जो धन मिलता है उसे पाकर मन में शांति की अनुभूति होती है। ये कहानी (आत्मिक शांति – Short Moral Story In Hindi) उसी के बारे में है।
बनारस नगर में एक पंडित जी का विशाल आश्रम स्थित था, जहां वे अपने शिष्यों को आदर्शों से युक्त शिक्षा प्रदान करते थे।
उनके आश्रम के सामने एक बढ़ई बैठा हुआ था, जिसने न केवल अपने काम को प्राथमिकता दी थी, बल्कि मधुर भजन गाते रहता था। हालांकि पंडित जी और उनके शिष्य इस भजन की ओर ध्यान नहीं देते थे।
एक दिन, पंडित जी गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। बीमारी के कारण उन्हें शिक्षा देने में असमर्थता हो गई। शिष्यों में से अधिकांश आश्रम को छोड़कर चले गए, लेकिन कुछ सेवानिवृत्ति भावनाओं वाले शिष्य ने आश्रम का काम संभाल लिया।
सेवाभावी शिष्यों ने पंडित जी की बहुत सेवा की और उनका उपचार कई बैद्य-हकीमों से करवाया, लेकिन पंडित जी स्वस्थ नहीं हो पा रहे थे। इसी दौरान उन्होंने बढ़ई के भजनों को ध्यानपूर्वक सुनना शुरू किया। धीरे-धीरे उनका ध्यान उनकी बीमारी से हटकर बढ़ई के भजनों की ओर मोड़ने लगा।
एक दिन पंडित जी ने एक शिष्य को भेजकर बढ़ई को बुलवाया और उससे कहा की तुम बहुत अच्छे और मधुर वाणी में भजन गाते हो। मेरा जो रोग बड़े-बड़े वेद्य ठीक नहीं कर पाए वो बड़ी आसानी से तुम्हारे भजन सुनने से ठीक हो रहा है। साथ ही साथ पंडितजी ने उस बढ़ई को सौ स्वर्ण मुद्राएं भी दी और उसे कहा तुम रोज इसी तरह गाते रहना।
बढ़ई सौ स्वर्ण मुद्राएं मिलने की वजह से बहुत खुश हुआ। बिना कठिन मेहनत किए उसे यह धन प्राप्त हुआ, जिससे वह बहुत ज्यादा खुश था।
किन्तु इस स्वर्ण मुद्राएं की वजह से धीरे-धीरे उसका ध्यान काम से हटने लगा। वह ये सोचने लगा कि बिना कठिन मेहनत किए मुझे धन कैसे अर्जित हुआ?
उसकी भजन से भी विरक्ति होने लगी। अपना बढ़ई का काम लगन से न करने से उसके काम की सफाई भी दिन व् दिन कम हो गई जिसके कारण उसके ग्राहक धीरे-धीरे कम होने लगे।
अब तो दिन-रात वह चिंता में रहता कि इन स्वर्ण मुद्राओं को कोई चुरा न ले। बढ़ई मेहनत से जी चुराने लगा। एक दिन बढ़ई की आत्मा जागी, उसने सोचा यह मेरे साथ ऐसा क्या हो रहा है ? फिर उसने थोड़ा गहराई से सोचा और स्वर्ण मुद्राएं लेकर पंडित जी के पास उनको वापिस करने पहुंच गया।
बढ़ई ने कहा, “पंडित जी, ये स्वर्ण मुद्राएं आप अपने पास ही रख लिजिए। मैं यह जान गया हूं कि बिना मेहनत से अर्जित किया हुआ धन इन्सान की सुख-शांति छीन लेता है। जो सुख अपनी मेहनत की कमाई में है, वह पराए धन में नहीं है।”
पंडितजी ने उसे जो सौ स्वर्ण मुद्राएं दी थी वो वापिस ले ली। अब बढ़ई को आत्मिक शांति मिली और अगले दिन से बढ़ई के मधुर भजन फिर से सुनाई देने लगे।
Moral : बिना मेहनत के प्राप्त धन से अशांति पैदा होती है, जबकि मेहनत से अर्जित धन आत्मिक शांति प्रदान करता है। इसलिए हमें सदा अपने मेहनत की कमाई ही खानी चाहिए।
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