दस स्वर्ण मुद्राएं – Short Moral Story In Hindi
समस्याओ का समाधान उसी के भीतर छिपा होते है बस हमें सिर्फ उसे ढूढ़ना आना चाहिए। ये कहानी (दस स्वर्ण मुद्राएं – Short Moral Story In Hindi) उसी के बारे मे है।
एक बार एक राजा ने अपने दरबारियों को बुलाया, उसने प्रत्येक दरबारी को दस स्वर्ण मुद्राएं दी और कहा की अगले तीन दिनों मे वे इन मुद्राओं को जिस प्रकार चाहे उस प्रकार खर्च कर सकते है।
स्वर्ण मुद्राएं पा कर सभी दरबारी बड़े खुश हुए। लेकिन तभी राजा ने बोला कि लेकिन मेरी तीन शर्ते है। सभी दरबारी राजा कि तरफ देखने लगे।
राज बोला कि एक तो तुम लोगो को तीन दिन बाद आकर बताना होगा कि इन्हे तुमने किस तरह से खर्च किया और दूसरी शर्त ये है कि तुम इनमे से एक भी स्वर्ण मुद्रा तब तक नहीं खर्च कर सकते, जब तक कि मेरा मुँह न देख लो। तीसरी और आखरी शर्त यह है कि यदि तुम इन्हे खर्च न कर पाए तो तुम्हे स्वर्ण मुद्राएं मुझे वापस लौटानी होगी।
सभी दरबारियों को राजा कि यह बात अरुचिकर लगी। किन्तु राजा का आदेश था तो मानना लाजमी था। अगले दिन सभी दरबारी सुबह – सुबह राजा का मुँह देखने राजमहल आ पहुंचे। सभी ने देखा कि वहा मुख्य द्वार पर एक बड़ा सा ताला लटका हुआ था।
अगले दिन भी ऐसा ही हुआ और तीसरे दिन भी ठीक ऐसा ही हुआ, मुख्य द्वार पर एक बड़ा सा ताला लटका हुआ था। इस तरह से उनके तीनो दिन ऐसे ही बीत गए। आखिरी चौथे दिन उन सभी कि राजा से मुलाक़ात हो पाई। राजा ने सबसे पहले स्वर्ण मुद्राओ के बारे मे पूछा। सबके चेहरे लटके हुए थे। उन्होंने राजा को उनकी मुद्राएं लौटा दी।
एक दरबारी चुपचाप खड़ा था। राजा ने उससे मुद्राओं के बारे मे पूछा तो उसने बताया कि उसने मुद्राओं को खर्च कर दिया है। फिर उस दरबारी ने पुरे खर्च का ब्यौरा भी पेश कर दिया।
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इस पर बाकि दरबारी राजा को भड़काने लगे कि इसने आपकी शर्त का उल्लंघन किया है, इसे दंडित किया जाए। इस पर वह दरबारी बोला कि उसने हर मुद्रा को राजा का मुँह देखने के बाद ही खर्च किया है।
राजा ने पूछा कि मै तो तीन दिन राज्य से बाहर था तो फिर तुमने मेरा चेहरा कैसे देखा? इस पर दरबारी ने बताया कि स्वर्ण मुद्रा कि एक ओर आपका चेहरा अंकित है। मै हर मुद्रा को खर्च करने से पहले उसी के दर्शन किया करता था। राजा उसकी चतुराई पर बहुत खुश हुआ और उसने उसे दस मुद्राएं और दी।
Moral : समस्याओ का समाधान उसी के भीतर छिपा होते है बस हमें सिर्फ उसे ढूढ़ना आना चाहिए।
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