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बलिदान – Short Story In Hindi

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Written by Abhishri vithalani

बलिदान – Short Story In Hindi

ये कहानी बलिदान के बारे में है।

हिमालय का एक अनूठा पेड़ अपने फलिय विशेषता के साथ एक निर्जन पहाड़ी नदी के तीर पर स्थित था। उसके फल बड़े, रसीले और मीठे होते थे। उनकी आकृति और सुगंध भी मन को मोह लेने वाली थी।

उस पेड़ पर वानरों का एक झुंड रहता था, जो बड़ी ही स्वछंदता के साथ उन फलो का उपभोग करता था। उन वानरों का एक राजा भी था जो अन्य बंदरो की तुलना में कही ज्यादा बलवान, गुणवान और शीलवान था, इसलिए वह महाकपि के नाम से जाना जाता था।

अपनी दूरदृष्टि से उसने समस्त वानरों को सचेत कर रखा था की उस वृक्ष का कोई भी फल उन टहनियों पर न छोड़ा जाए जिनके नीचे नदी बहती हो। उसके अनुगामी वानरों ने भी उसकी बातो को पूरा महत्व दिया क्योकि अगर कोई फल नदी में गिरकर और बहकर मनुष्य को प्राप्त हो जाता तो उसका परिणाम वानरों के लिए अत्यंत भयंकर होता।

एक दिन दुर्भाग्यवश उस पेड़ का एक फल पककर टहनी से टूट कर बहती हुई उस नदी की धारा में प्रवाहित हो गया। उन्ही दिनों उस देश का राजा अपनी रानियों व् दास – दासियों के साथ उसी नदी के तीर पर विहार कर रहा था।

वह प्रवाहित फल आकर वह रुक गया। उस फल की सुगंध से राजा आनंदित हो गया। उसने तुरंत अपने सेवको को उस सुगंध के स्रोत ले पीछे दौड़ा दिया।

राजा के आदमी तत्काल उस फल को नदी के तीर पर प्राप्त कर राजा के सम्मुख ले आए। फल का परीक्षण कराया गया तो पता चला की वह एक विषहीन फल था।

राजा ने जब उस फल का रसास्वादन किया तो उसके ह्रदय में वैसे फलो तथा उसके वृक्ष को प्राप्त करने की तीव्र लालसा जगी। क्षण भर में सिपाहियों ने वैसे फलो के पेड़ को भी ढूंढ लिया।

किन्तु वानरों की उपस्थिति उन्हें वहा रास नहीं आई, तत्काल उन्होंने तीरों से वानरों को मारना शुरू कर दिया। महाकपि ने तब अपने साथियो को बचाने के लिए कूदते हुए उस पेड़ के निकट की एक पहाड़ी पर स्थित एक बेत की लकड़ी को अपने पैरो से फंसाकर, फिर से उसी पेड़ की टहनी को अपने साथियो के लिए एक पुल का निर्माण कर लिया।

फिर उसने चिल्लाकर अपने साथियो को अपने ऊपर चढ़कर बेतो वाली पहाड़ी पर कूदकर भाग जाने की आज्ञा दी। इस प्रकार महाकपि के बुद्धि – कौशल से सारे वानर दूसरी तरफ की पहाड़ी पर कूदकर भाग गए।

राजा ने महाकपि के त्याग को बड़े गौर से देखा और सराहा। उसने अपने आदमियों को महाकपि को जिंदा पकड़ लाने की आज्ञा दी। उस समय महाकपि की हालत अत्यंत गंभीर थी।

साथी वानरों द्वारा कुचल जाने के कारण उसके पुरे शरीर में दर्द होने लगा। राजा ने उसके उपचार की सारी व्यवस्था भी करवाई, मगर महाकपि की आँखे हमेशा के लिए बंद हो चुकी थी।

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Abhishri vithalani

I am a Hindi Blogger. I like to write stories in Hindi. I hope you will learn something by reading my blog, and your attitude toward living will also change.

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