Motivational Long Story In Hindi – एक बूढ़ी मां
हमें हमेशा दुसरो की मदद करनी चाहिए, आपकी एक छोटी सी मदद से किसी की जिंदिगी बदल सकती है। इस कहानी ( Motivational Long Story In Hindi – एक बूढ़ी मां ) में भी कुछ ऐसा ही होता है।
हररोज की तरह गुप्ता जी स्कूटर पर सवार होकर के सुबह – सुबह दफ्तर जा रहे थे। उनकी पत्नी ने कहा कि वापस आते हुए सेब ले करके आना।
जब ऑफिस की दिशा में रवाना हो रहे थे, तो फ्लाइ ओवर से पहले ही एक सड़क किनारे बैठी हुई एक महिला दिखी, जो सेब बेच रही थी।
उन्होंने अपना स्कूटर रोक लिया और सवाल किया, “क्या भाव है, माताजी?” महिला ने उत्तर दिया, “चालीस रुपये किलो।” इस पर गुप्ता जी, मोलभाव पर अड़ गए।
गुप्ता जी कहने लगे कि तीस रुपए प्रति किलो, माताजी ने कहना शुरू किया पैंतीस रुपए प्रति किलो। इस पर गुप्ता जी ने उत्तर दिया, “तीस रुपए से एक रुपए ज्यादा नहीं दूंगा।”
माताजी ने कहा, “बेटा, इससे कम नहीं, पैंतीस रुपए प्रति किलो ले लो ना।” गुप्ता जी ने अपने स्कूटर की रेस बढ़ाई और कहा, “तीस रुपए से एक रुपए ज्यादा नहीं मिलेगा।”
माताजी कहती है, “बेटा, ऐसा मत करो, ले लो ना पैंतीस रुपए प्रति किलो।” गुप्ता जी ने अपने ऑफिस की दिशा में स्कूटर चलाते हुए वहां से बाहर निकल लिया और ऑफिस पहुँच गए।
शाम को फिर से बाहर निकलते समय वो एक फल भंडार में पहुँच गए, जिसमें विभिन्न फलों का विकल्प है। अब वहाँ मोलभाव करने का कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उस स्थान पर एक फिक्स्ड रेट का बोर्ड लगा हुआ था।
जब वह वहाँ पहुंचे और देखा कि सेब का मूल्य पचास रुपये किलो है, तो गुप्ता जी को थोड़ी हैरानी हुई। क्योकि वहाँ सड़क किनारे उपलब्ध हो रहे सेब का मूल्य चालीस रुपये किलो था।
उन्हें यह लगा कि कुछ अजीब सा हो रहा है, इसलिए वह तेजी से फल भंडार के मालिक के पास गए और बोले, “भाई साहब, चालीस रुपये किलो में दो ना।”
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फल भंडार के मालिक ने हंसते हुए कहा, “भाई साहब, यहाँ सब फिक्स्ड रेट में मिलता है, आप यहाँ पर मोल – भाव नहीं कर सकते, अगर आपको मोल – भाव करना है तो किसी ओर जगह से ले लो।”
गुप्ता जी ने कहा, “ठीक है, लेकिन मुझे पता चला कि बाहर की दुकानों में तो यही रेट है।”
फल भंडार के मालिक ने कहा, “भाई साहब, यहाँ तो वह नहीं है, कृपया आप एक बार जो पीछे बोर्ड पर लिखा है उसे पढ़ ले, कि मोलभाव करके हमें शर्मिंदा न करें।”
गुप्ता जी शर्म से वहाँ से निकल गए, उम्मीद में कि फ्लाइओवर के नीचे किनारे पर जो महिला बैठी थी, वह शायद अब भी वही होगी और वहाँ से सेब खरीदने का विचार किया जा सकता है।
उन्होंने स्कूटर को दौड़ाया और पहुंचे तो वहाँ महिला बैठी हुई थी। महिला ने गुप्ता जी को पहचान लिया और कहने लगी कि पैंतीस रुपये किलो बस मोलभाव मत करो।
गुप्ता जी मुस्कुराए और कहा, “कोई बात नहीं माताजी, आप दो किलो सेब पैक कर दीजिए और इसके लिए मैं आपको सौ रुपये दे दूंगा।”
महिला ने कहा, “मेरे पास खुले पैसे नहीं हैं।” शर्मा जी ने कहा, “खुले की जरूरत नहीं है, आप रख लो सौ रुपये और दो किलो सेब मुझे दे दो।”
महिला ने मुस्कराते हुए कहा, “आपका बहुत धन्यवाद।” गुप्ता जी ने कहा की मै अभी अभी एक बड़ी दूकान में देख कर आया हु वहा पर भी सेब 50 रूपये किलो ही मिलते है, तो वहा से लेने से अच्छा है की मै आपके यहाँ से ले लू।
माता जी की आंखों में आंसू आ गए, उन्होंने कहा, मैं कैसे बताऊं, हमारी स्थिति इतनी कठिन हो गई है कि सड़क किनारे फल बेचने में मजबूर हूं। मेरे पति की मृत्यु हो गई थी और वे बीमार थे।
कर्जा भी बढ़ गया और हम सब से सहारा मांगते रहे, इसी कष्ट से बाहर निकलने के लिए मुझे सड़क किनारे ये फल बेचने पड़ रहे है। यह एक आशा है कि कोई इसे खरीद लेगा, लेकिन कोई खरीदता ही नहीं।
इस पर गुप्ता जी ने कहा, इस तरह की बातें मत करो, मैं कल सुबह फिर आऊंगा और कुछ और पैसे लेकर तुम्हारे पास आऊंगा।
घर पहुंचकर गुप्ता जी ने अपनी पत्नी को दो किलो सेब दे दिए और उनसे कहा, मुझे पांच सौ रुपए का एक नोट लाकर के दो कल किसी की मदद करनी है।
मैडम ने पूछा, “क्या हुआ?” और गुप्ता जी ने उन्हें पूरी कहानी सुनाई। उन्होंने कहा, हम पता नहीं क्यों मोलभाव करते हैं, सड़क किनारे जो सामान बेचते हैं उन लोगों से जो अपनी मेहनत से जी रहे हैं और लाचार होते हैं। हमें उनकी मदद करनी चाहिए इस तरह की कठिनाईयों में।
लाचार होने के बावजूद, वे अपनी जीवनशैली को बनाए रख रहे हैं और हम उनसे भी मोल भाव कर रहे होते हैं जबकि बड़े बड़े शोरूम में जाते हैं और पैसे देकर के आ जाते हैं।
अगले दिन गुप्ता जी ने माता जी के पास पहुंचकर पांच सौ का नोट दिया और कहा, माता जी, आप अब कर्जा चुकाना शुरू करें और फल लाना शुरू करें मंडी से।
माताजी ने कहा, “बेटा, तुम्हारे पांच सौ रुपए का कर्जा मै कैसे चुकाऊंगी?” गुप्ता जी ने कहा, “चिंता मत करो, मैं आपसे फल खरीदता रहूंगा।”
ऑफिस में जाकर गुप्ता जी ने इस बात को अपने साथियों के साथ साझा किया और उन्होंने भी इस माता जी से फल खरीदने का निर्णय लिया।
सभी साथियों ने मिलकर पैसे इकट्ठा किए और एक ठेलागाड़ी माताजी को खरीदकर दे दी। इससे माताजी को काफी फायदा हुआ और धीरे – धीरे उसका धंधा भी अच्छे से चलने लगा।
हमें हमेशा दुसरो की मदद करनी चाहिए, आपकी एक छोटी सी मदद से किसी की जिंदिगी बदल सकती है। आप दूसरों की मदद करते रहिए भगवान आपकी मदद करेगा, और मोल भाव करना बंद कीजिए।
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