तनाव – Moral Story In Hindi
ये कहानी है तनाव के बारे में । इंसान तनाव में कोई भी काम अच्छे से नहीं कर सकता है ।
पुराने समय की बात है । एक राजा अपने राज्य में राज करता था । उसका राज्य बहुत ख़ुशहाल था और राज्य में धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी । प्रजा और राजा ख़ुशी से अपना जीवन जी रहे थे ।
लेकिन एक वर्ष उस राज्य में अकाल पड़ा और पानी की कमी के कारण फ़सलें सूखने लगी । ऐसी अकाल की स्थिति में किसान राजा को लगान नहीं दे पाए और इस वजह से राजस्व में कमी आ गई और धीरे – धीरे राजकोष खाली होने लगा ।
ये सब होने से राजा का तनाव अब बहुत बढ़ गया था । वो हरवक्त सिर्फ यही सोचता की राज्य का खर्च कैसे चलेगा ? कुछ समय के बाद स्थिति सामान्य हो गई और अकाल का समय भी निकल गया लेकिन राजा के मन में अभी भी अपने राज्य के लिए चिंता थी ।
राजा के दिमाग में अभी भी हरवक्त यही रहता की अगर राज्य में पुनः अकाल की स्थिति आ गयी , तो क्या होगा ? उसके अलावा भी वो दूसरी चिंता करता रहता जैसे की , पड़ोसी राज्य का भय और मंत्रियों का षड़यंत्र आदि । वो इन सब चिंता के कारण रात को अच्छे से सो भी नहीं पाता था और उसकी भूख-प्यास भी इस तनाव ने छीन ली थी ।
वो अपनी इस हालत से परेशान था । राजा जब भी अपने राजमहल के माली को देखता, तो आश्चर्य में पड़ जाता क्योकि दिन भर मेहनत करने के बाद वह रूखी-सूखी रोटी भी मजे से खाता और पेड़ के नीचे आराम से सोता था । राजा को कई बार उस माली से जलन भी होती थी ।
एक दिन राजा के दरबार में एक महात्मा आये । राजा ने अपनी समस्या उस महात्मा को बताई और उनसे ये भी कहा की आप मुझे इस समस्या को दूर करने का कोई उपाय बताइये । महात्मा ने राजा की समस्या को पहले अच्छे से समज लिया और बाद में राजा से कहा की , तुम्हारी चिंता की जड़ है तुम्हारा राज-पाट ।
तुम अपना राज-पाट पुत्र को दे दो और इस समस्या से मुक्त हो जाओ । राजा ने कहा लेकिन मेरा पुत्र तो सिर्फ सात साल का है , वो कैसे राज-पाट संभालेगा ? महात्मा ने कहा तो फिर तुम अपना राज-पाट मुझे दे दो और इस चिंता से मुक्त हो जाओ ।
राजा अपना राज-पाट उस महात्मा को देने के लिए तैयार हो गया और उसने अपना राज-पाट महात्मा को सौंप दिया । इसके बाद उस महात्मा ने राजा से पूछा की अब तुम क्या करोगे ? राजा ने कहा में कोई Business कर लूंगा । महात्मा ने कहा लेकिन तुम Business के लिए पैसो की व्यवस्था कैसे करोगे ? अब तो सारा राज-पाट मेरा है और इसलिए राजकोष के धन पर भी सिर्फ मेरा ही हक है ।
राजा ने कहा कोई बात नहीं में अब नौकरी कर लूंगा । महात्मा ने कहा अगर तुम्हे नौकरी ही करनी है तो तुम्हे कहीं और जाने की कोई जरुरत नहीं है । तुम राजमहल में ही रहकर मेरी ओर से ये राज-पाट संभाल लो और में अपनी कुटिया में ही रहूंगा । राजा ने कहा अच्छा ठीक है ।
अब वो राजा महात्मा की नौकरी करते हुए राजपाट संभालने लगा और महात्मा अपनी कुटिया में चले गए । कुछ दिन बाद वो महात्मा फिर से राजमहल में आये और उन्होंने राजा से पूछा की , बताओ अब तुम्हें भूख लगती है या नहीं ? तुम्हारी नींद का क्या हाल है ?
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राजा ने कहा अब तो में हररोज अच्छे से खाता हु और मुझे हररोज अच्छी नींद भी आ जाती है । राजा ने महात्मा से पूछा की , में पहले भी राजपाट का कार्य करता था और अभी भी में वही कार्य करता हु तो फिर ये परिवर्तन कैसे ?
महात्मा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया की , पहले तुमने अपने कार्य को बोझ बना लिया था और तुम हरवक्त उस बोझ को अपने दिमाग में लेकर तनाव के साथ घूमते थे , लेकिन राजपाट मुझे सौंपने से तुम अपना सारा कार्य अपना कर्तव्य समझकर करते हो और इसलिए ही तुम अब तनावमुक्त हो गए हो ।
Moral : अगर हम अपना काम बोझ समझकर करेंगे तो हमारा तनाव और भी बढ़ेगा इसलिए हमें अपना काम अपना कर्तव्य समझकर करना चाहिए ।
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