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आलसी गधा – Hindi Panchtantra Story

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Written by Abhishri vithalani

आलसी गधा – Hindi Panchtantra Story

ये कहानी (आलसी गधा – Hindi Panchtantra Story) है आलस के बारे में । हमें अपने कर्त्तव्य का पालन करने में कभी भी आलस नहीं करनी चाहिए ।

गांव में एक व्यापारी अपने गधे के साथ रहता था । उस व्यपारी का घर बाजार से कुछ दुरी पर ही था । व्यापारी हररोज गधे की पीठ पर सामान की बोरियां रखकर बाजार जाया करता था । व्यापारी का स्वभाव काफी अच्छा था । वो अपने गधे का अच्छी तरह से ध्यान रखता था ।

वैसे तो गधा भी अपने मालिक से बहुत प्यार करता था किन्तु समस्या ये थी की गधा बहुत ज्यादा आलसी था । गधे को काम करना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था । गधे को तो बस पूरा दिन आराम करना और खाना ही पसंद था ।

एक दिन व्यापारी को पता चला की बाजार में नमक की मांग बढ़ गयी है । उस दिन उसने ये तय कर लिया की वो अब बाजार में नमक बेचना शुरू कर देगा ।

दूसरे ही दिन व्यपारी ने नमक की चार बोरियां गधे की पीठ पर लादी और उसे बाजार चलने के लिए तैयार कर दिया । व्यापारी को पहले से ही पता था की उसका गधा आलसी है उसलिए वो जब गधा चलता नहीं था तब गधे को धक्का देता था ।

नमक की बोरियां थोड़ी भारी थीं इस वजह से गधे के पैर कांप रहे थे और उसे चलने में मुश्किल हो रही थी । लेकिन व्यापारी गधे को धक्का देते देते उसे किसी भी तरह आधे रास्ते तक ले आता है ।

व्यापारी के घर और बाजार के बीच में एक नदी थी जिसे पुल की मदद से पार करना पड़ता था । गधा नदी पार करने के लिए उस पुल पर चढ़ा और कुछ दूर चलने के बाद उसका पैर फिसल गया और वो नदी में गिर जाता है ।

व्यापारी इस तरह से गधे को नदी में गिरता हुआ देखकर परेशान हो जाता है और तुरंत ही तैरते हुए उसे नदी से बाहर निकालने की कोशिश करता है । कुछ प्रयत्न के बाद आखिरकार व्यापारी ने अपने गधे को नदी से बाहर निकल ही दिया ।

गधा जब नदी से बाहर निकला तब उसने देखा की उसकी पीठ पर लदी बोरियां अब पहले से हल्की हो गई थी । पानी में गिरने की वजह से अब सारा नमक पानी में घुल गया था और इस वजह से उसकी पीठ पर का बोज अब कम हो चूका था ।

दूसरी तरफ सारा नमक पानी में घुलने की वजह से व्यापारी को अच्छा नुकसान हुआ और अब उसे आधे रास्ते से ही घर वापिस जाना पड़ा । वो बड़ा दुखी था और गधा पीठ पर बोज कम होने की वजह से खुश था और उसे तो बाजार तक न जाने की तरकीब मिल गई थी ।

दूसरे दिन भी बाजार जाते समय जब पुल आया तब गधा जानबूझकर नदी में गिर गया और कल की तरह आज भी उसकी पीठ पर टंगी बोरियों में रखा सारा नमक पानी में घुल गया । आज भी व्यापारी को आधे रास्ते से ही घर वापिस लौटना पड़ा ।

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अब तो गधे ने हर दिन ऐसा जानबूझकर नदी में गिरना शुरू कर दिया था ताकि उसे भारी बोरियों का वजन उठाना न पड़े । किन्तु व्यापारी को धीरे – धीरे गधे की ये तरकीब का पता चल जाता है ।

एक दिन व्यापरी ने सोचा की क्यों न गधे की पीठ पर ऐसा सामान रख दिया जाए जिसका वजन पानी में गिरने से बढ़ जाए । इसी सोच के साथ व्यापारी ने इसबार गधे की पीठ पर रूई से भरी बोरियां बांध दी और उसे लेकर बाजार की ओर चल पड़ा ।

इसबार भी गधा हररोज की तरह नदी में गिर जाता है पर इसबार उसकी पीठ पर का वजन कम नहीं हुआ, बल्कि और भी बढ़ गया । इसबार गधा समज ही नहीं पाया इस आज ऐसा तो क्या हुआ की मेरे पीठ पर का वजन बढ़ गया ।

व्यापारी ने अगले तीन – चार दिनों तक ऐसा ही किया । उसने गधे के पीठ पर नमक की जगह पर रूई से भरी बोरी ही बाँध दी और जैसे ही गधा नदी में गिरता की उसकी पीठ पर वजन बढ़ जाता ।

ऐसा लगातार कुछ दिनों तक होने के कारण , आख़िरकार गधे ने हार मान ही ली । गधे को अब अच्छा सबक मिल चूका था और वो चुपचाप पुल पार करने लगा ।

व्यापारी भी अब रूई की जगह नमक से भरी बोरिया बाँधने लगा और गधा भी अब काम करने में आलस नहीं दिखता था । इस तरह से उस व्यापारी के सारे नुकसान की भरपाई भी धीरे – धीरे होने लगी ।

Moral : हमें अपने कर्त्तव्य का पालन करने में कभी भी आलस नहीं दिखानी चाहिए और हम इस व्यापारी की तरह अपनी सूझबूझ से किसी भी काम को आसानी से पूरा कर सकते है ।

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Abhishri vithalani

I am a Hindi Blogger. I like to write stories in Hindi. I hope you will learn something by reading my blog, and your attitude toward living will also change.

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