आज ही क्यों नहीं ? – Motivational Short Story In Hindi
“कल करे सो आज, आज करे सो अब”। ये मुहावरा तो आप सभी ने सुना ही होगा, किन्तु जब बात आती है वास्तव में किसी काम को पूरा करने की तो हम में से कही सारे लोग काम को कल के लिए छोड़ देते है। बाद में उसका क्या परिणाम आता है ये कहानी में उसी की बात की गयी है।
एक समय की बात है, एक गाँव में एक गुरु और उसके एक शिष्य रहते थे। इस गुरु को सभी गुरुदेव कहकर पुकारते थे और उसके शिष्य का नाम था रमेश।
गुरुदेव और रमेश का आपसी संबंध बेहद गहरा था। गुरुदेव कभी-कभी अपने शिष्य को मान्यता के साथ बुलाकर संदेश देते थे। वे उसे समझाते कि जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है स्वाध्याय और आत्मविकास।
लेकिन रमेश का स्वभाव था कुछ अलग ही। वह था आलसी और उसे सुख-शांति की आदतें थीं। उसका ध्यान अक्सर विचारों में खो जाता था और वह अपने कामों को कल पर छोड़ देता था। इसके परिणामस्वरूप, उसकी प्रगति धीमी थी और गुरुदेव को चिंता होने लगी कि रमेश अपने जीवन के महत्वपूर्ण कार्यों में पराजित हो रहा है।
गुरुदेव ने समय के साथ रमेश की स्थिति को देखते हुए योजना बनाई। एक दिन, वह रमेश के पास गए और उसे काले पत्थर का एक टुकड़ा दिया। गुरुदेव ने कहा, “रमेश, मैं तुम्हें यह जादूई पत्थर देता हूँ। इस पत्थर का एक खास गुण है। इसका स्पर्श करने पर कोई भी लोहे की वस्तु स्वर्ण में परिवर्तित हो जाती है। परंतु ध्यान दो, तुम्हारे पास इस पत्थर का उपयोग करने के लिए केवल दो दिन का समय है। दूसरे दिन मेरे पास इसे लौटाना होगा।”
रमेश ने खुशी-खुशी इस पत्थर को ग्रहण किया और अपने घर ले गया। वह सोचने लगा कि अगर वह इस पत्थर का सही तरीके से उपयोग करता है, तो वह धनी और समृद्ध हो सकता है।
पहले दिन रमेश ने सोचा, “अब तो कोई भी काम बड़ी आसानी से हो जायेगा और मेरे पास पैसे ही पैसे होंगे, में बाजार जाके बड़े बड़े लोहे की चीज़ो को ले आऊंगा और फिर उसे स्वर्ण में परिवर्तित कर दूंगा।” लेकिन फिर उसने सोचा कि वह इस काम को कल के लिए छोड़ देगा।
दूसरे दिन रमेश के मन में यह विचार था कि अब वह इस पत्थर का उपयोग करके धनी बनेगा। लेकिन उसने ध्यान देने की बजाय दोपहर का भोजन किया और फिर आराम करने लगा। देखते ही देखते उसका दूसरा दिन भी चला जा रहा था।
सूर्यास्त के समय,जब वह जल्दी-जल्दी बाज़ार की तरफ भागने लगा तब उसने देखा कि गुरुदेव अपने दूसरे शिष्य के साथ बात कर रहे हैं। रमेश ने उनके पास जाकर विनम्रता के साथ कहा, “गुरुदेव, क्या मैं इस पत्थर को और एक दिन के लिए रख सकता हूँ? मेरे पास आज समय नहीं था।”
गुरुदेव ने मुस्कराते हुए कहा, “रमेश, तुम यह टुकड़ा और एक दिन के लिए नहीं रख सकते हो, मेने तुम्हे पहले ही बताया था की तुम्हे मुझे दो दिन के बाद ये टुकड़ा वापिस देना पड़ेगा।” रमेश के बहुत मनाने के बावजूद भी उसके गुरुदेव नहीं माने।
रमेश ने गुरुदेव के संदेश को समझ लिया। उसे यह सिख मिली कि सफलता के लिए समय पर काम करना और आलस्य को दूर करना जरूरी होता है। उसने निश्चय किया कि वह आलस्य को त्यागकर अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रतिबद्ध रहेगा।
Moral : इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सफलता के लिए समय पर काम करना और आलस्य को त्यागना जरूरी होता है। हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सतत प्रयास करना चाहिए और समय का महत्व समझना चाहिए। आलस्य से बचकर हम अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते है।
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