गुस्से की दवा – Short Moral Story In Hindi
गुस्से का इलाज केवल चुप रहकर ही किया जा सकता है। क्योकि गुस्से में व्यक्ति उल्टा सीधा बोलता है, जिससे विवाद बढ़ता है। इसलिए क्रोध का इलाज केवल मौन है। इस कहानी (गुस्से की दवा – Short Moral Story In Hindi) में भी उसी के बारे में बात की गई है।
एक स्त्री थी। उसे बात बात पर गुस्सा आ जाता था। उसकी इस आदत से पूरा परिवार परेशान था। उसकी वजह से ही पुरे परिवार में कलह का माहौल बना रहता था। परिवार के सभी लोग उसकी इस आदत से तंग आ चुके थे। वो सभी चाहते थे की किसी न किसी तरह उसकी ये आदत में सुधार आए।
एक दिन उस महिला के दरवाजे पर एक साधु आए। महिला ने साधु को अपनी समस्या बताई। महिला ने साधु से कहा की महाराज मुझे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है। में चाहकर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाती हु। मुझे आप कृपया करके कोई उपाय बताइए।
साधु ने अपने झोले में से एक दवा निकालकर उसे दे दी और बताया की जब भी तुम्हे गुस्सा आए इसमें से चार बून्द दवा अपनी जीभ पर डाल लेना और दस मिनट तक दवा को मुँह में ही रखना है। तुम्हे दस मिनट तक मुँह नहीं खोलना है, नहीं तो दवा असर नहीं करेगी।
महिला ने साधु के बताये अनुसार दवा का प्रयोग शुरू किया। सात दिन में ही उसकी गुस्सा करने की आदत छूट गई। महिला के साथ साथ उसके परिवार वाले लोग भी उसकी आदत छूटने की वजह से बहुत खुश थे। अब घर में कलह बंद हो गया था।
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सात दिन बाद वह साधु फिर उसके दरवाजे पर आया तो महिला उसके पैरो में गिर पड़ी। महिला ने कहा, महाराज! आपकी दवा से मेरा क्रोध गायब हो गया। अब मुझे गुस्सा नहीं आता और मेरे परिवार में शांति का माहौल रहता है। तभी साधु ने उसे बताया की वह कोई दवा नहीं थी। उस शीशी में केवल पानी भरा था।
उस साधु की दवा चाहे असली हो क्या फिर नकली लेकिन वह इस महिला के लिए तो आशीर्वाद रूप ही थी। इसका मतलब गुस्से का इलाज और कोई नहीं बल्कि अपने मन को शांत रखना और मौन रहना ही है। क्योकि बोलने से ही विवाद बढ़ता है और जो सुन रहे होते है उन सबका दिमाग खराब होता है।
Moral : गुस्से का इलाज केवल चुप रहकर ही किया जा सकता है। क्योकि गुस्से में व्यक्ति उल्टा सीधा बोलता है, जिससे विवाद बढ़ता है। इसलिए क्रोध का इलाज केवल मौन है।
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