ज्ञान की परंपरा – Short Story In Hindi
ज्ञान की परंपरा चलती रहनी चाहिए। इसलिए सभी को अपना दायित्व अगली पीढ़ी को सौप कर उसके रास्ते से हट जाना चाहिए और ज्ञान के नए नए क्षेत्र की खोज में समय बिताना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर उसका क्या परिणाम आता है, ये इस कहानी (ज्ञान की परंपरा – Short Story In Hindi) में बताया गया है।
एक बार बुद्ध ने मिथिला में आम के एक बगीचे में डेरा डाला था। शाम का समय था। बुद्ध मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। पास बैठे आनंद ने इसका कारण पूछा तो बुद्ध ने कहा, मुझे यहाँ के राजा मखादेव की कथा याद आ रही है। वह बहुत ही दयालु, धार्मिक और बुद्धिमान था।
प्रजा उसके कार्य से बहुत खुश थी। एक दिन मखादेव ने अपने बेटे से कहा की बेटा अब में बूढ़ा हो चूका हु। मै संन्यास धारण कर के कल्याण मार्ग की खोज में निकलूंगा। मेरे बाद तुम्हे ही इस राज्य का शासन देखना और संभालना है।
एक बात और की मेरी यह संन्यास वृति मेरे ही तक सीमित न रहे। मै चाहता हु की मेरी तरह मेरे वंशज भी प्रजा के हित में काम करते हुए मेरी तरह संन्यास धारण करके ज्ञान की खोज में निकले।
तुम भी जब बूढ़े हो जाओ तो अपने बेटे को शासन का भार सौंप कर संन्यास धारण कर लेना। बेटे ने कहा आप बिलकुल निश्चिंत रहिये, आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी।
मखादेव के बाद कई पीढ़ियों तक यह सिलसिला चलता रहा। राज्य में सुख – शांति बनी रही। मगर जब कलारजनक राजा बना, तो यह क्रम टूट गया। क्योकि कलारजनक राजा बहुत ही ज्यादा लोभी और अत्याचारी था। वह अंतिम समय तक राजा बना रहा।
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इस तरह कुल की प्रथा समाप्त हो गयी। इसी के साथ राज्य की खुशहाली भी विदा हो गयी। बुद्ध ने कहा आनंद मै यही सोच कर हँस रहा था कि पता नहीं मेरे बाद भी मेरे दिखाए गए मार्ग पर हमारे भिक्षु चलेंगे या नहीं। कही तुम्हारे बाद इस कल्याणकारी मार्ग का अंत ना हो जाए।
आनंद ने कहा आपने जो रास्ता दिखाया है वह कभी अवरुद्ध नहीं होगा। बुद्ध ने कहा मै भी यही चाहता हु। ज्ञान चलायमान है। इसका मार्ग हमेशा चलता रहे इसी में मानवता का हित है। जिस दिन इसका रास्ता रुक जाएगा, समाज नष्ट हो जाएगा।
इसलिए सभी को अपना दायित्व अगली पीढ़ी को सौप कर उसके रास्ते से हट जाना चाहिए और ज्ञान के नए नए क्षेत्र की खोज में समय बिताना चाहिए।
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