मन में दौड़ता घोडा – Short Story In Hindi
आप में से कही सारे लोग ऐसे होंगे जो की भगवान् का नाम तो ले रहे होते है, माला तो जपते है किन्तु मन में कुछ न कुछ और ही चल रहा होता है। मन में कुछ और सोच के भगवान का नाम जपने से कुछ नहीं होता है। इसलिए जब हम भगवान का नाम ले रहे होते है तब हमें अपना मन सिर्फ भगवान के जाप में रखना चाहिए, तभी हम हमारे आत्मा के उद्धार का मार्ग ढूंढ पाएंगे। इस कहानी ( मन में दौड़ता घोडा – Short Story In Hindi ) में उसी के बारे में बात की गई है।
एक बार एक बड़े परोपकारी संत अपने घोड़े पर सवार होकर एक गांव की ओर जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक राजगीर मिला, उसने संत से कहा की मुझे आप जिस रास्ते में जा रहे हो उसी रास्ते में आते एक गांव में जाना है। अगर आप मुझे थोड़ा सा साथ दे दो तो आपकी बड़ी महेरबानी होंगी।
संत ने उस राहगीर की बात को स्वीकार कर लिया ओर अपने घोड़े पर बिठा लिया। वो दोनों घोड़े पे बैठकर साथ – साथ गांव की ओर बढ़ रहे थे। उसी दौरान दोनों में संवाद भी हुआ।
राहगीर बोला, महाराज! आप तो साधु – महाराज है, आपको इस घोड़े का क्या काम? आपके न तो बाल – बच्चे है और न ही धंधा और न ही कोई व्यापार। आप तो संत है तो फिर आप इसे घोड़े का क्या करेंगे?
हम गृहस्थ है। घोड़े का अधिक उपयोग तो हमारे लिए है। इसलिए कृपा करके आप ये घोडा मुझे दे दो तो आपकी बड़ी कृपा होगी।
राहगीर की बात सुनकर संत ने कहा – अच्छा ठीक है, मै यह घोडा तुम्हे दे दूंगा। किन्तु बदले मै मेरी एक शर्त है कि तुम्हारा गांव चार मिल दूर है, जबतक गांव नहीं आता तुम्हे पूरे रास्ते केवल राम नाम जपना होगा। अगर गलती से भी एक बार “राम, राम, राम…” छूटा तो मै ये घोडा तुम्हे नहीं दूंगा।
ये सुनकर राहगीर खुशी के मारे उछलने लगा और सोचता है की मेने इस संत को अच्छा पटा लिया। सिर्फ 15-20 मिनट की बात है और फिर ये घोडा मेरा हो जाएगा।
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घोडा अपनी गति से चल रहा था और राहगीर का मन उससे भी कई ज्यादा तेज गति से चल रहा था। उसने सोचा संत ने कहा है कि घोडा दूंगा लेकिन लगाम की तो बात हुई ही नहीं! मुँह से राम – राम बोल रहा है और मन में लगाम देंगे की नहीं? राम – राम लगाम देंगे की नहीं?
कुछ समय के बाद आखिर उसने पूछ ही लिया की महाराज आप घोडा तो दोंगे, लगाम दोंगे की नहीं? संत ने कहा “ज्ञानी” अब न घोडा मिलेगा ना ही लगाम, क्योकि तुम शर्त हार गए।
लोग बड़ी मुश्किल से भगवान् का नाम जपते है पर जिस समय जपने बैठते है उसी समय ध्यान लगाने की जगह दुनियादारी की सब बात सोचते है। बाकि समय तो अपने मन को कही न कही पर लगाए रखते है।
हमारा पुरुषार्थ इसी में है की माला गिनने को एक धार्मिक कर्म न माने, बल्कि उसे पाप काटने का एक अमोघ अस्त्र मानकर स्वीकार करे, भावपूर्वक जपे फिर देखिये कैसा अचिन्त्य प्रभाव होता है। जीवन की दिशा – दशा सुधरने के साथ आत्मा के उद्धार का भी मार्ग खुलेगा।
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