मुक्ति – Short Inspirational Story In Hindi
जब हमारा जीव पृौढ अबस्था में भी संसार में रहता है तो हमें मरने के बाद की मुक्ति नहीं मिलती है , ये कहानी (मुक्ति – Short Inspirational Story In Hindi) उसी के बारे में है।
गांव के किनारे एक बुजुर्ग किसान रहता था। उसका नाम रामु था। रामु जी ने अपना पूरा जीवन खेती में लगा दिया था और उनका समय बेटे, पोते और पोतियों के साथ बितता था।
एक दिन, एक प्रसिद्ध संत उनके गांव आए। उनकी आगमन की खबर सुनकर रामु जी उनसे मिलने गए। वे संत ध्यान में डूबे हुए थे, लेकिन उन्होंने रामु जी के पूछे जाने पर उनके समस्याओं को सुना।
रामु जी ने कहा, “महात्मा, मुझे अपने जीवन में संतोष नहीं है। मेरे पास पैसों की कमी नहीं है, मेरे पास एक सुखद परिवार है, लेकिन मेरे मन को शांति नहीं मिलती। मैंने अपने परिवार के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन मुझे सच्चे सुख की खोज में कोई सफलता नहीं मिली।”
संत ने रामु जी की दिशा में देखते हुए कहा, “बेटा, सुख और शांति की तलाश अच्छी बात है, लेकिन यह आपके स्वार्थ के आस-पास नहीं है। जीवन में सच्चा सुख और शांति मोह और आसक्ति से बाहर है।”
रामु जी ने चिंताजनक आवाज में पूछा, “महात्मा, तो मुझे यह सुख और शांति कैसे प्राप्त होगा ? आप मुझे उसे प्राप्त करने का तरीका बताइए।”
संत ने प्रसन्नता के साथ कहा, “बेटा, तुम अपने मोह और आसक्तियों से मुक्त होकर ही वास्तविक सुख और शांति प्राप्त कर सकते हो। जीवन के रिश्तों में बंधकर तुम सुख की परेशानियों में फंस जाते हो।” चलो में तुम्हें अपने साथ भक्ति के मार्ग पर ले जाता हु।
ऐसा करने से तुम कष्टों से पूरी तरह मुक्त हो जाओगे। किसान को अपने परिवार से मोह था। वह बोला, महाराज जरा पोते, पोतियों के साथ समय गुजार लू फिर मैं आपके साथ चलूंगा। संत ने कहा अच्छा ठीक है।
कुछ वर्षो के बाद संत वापस आए तो वृद्ध किसान इसबार बोला, “जरा अपने पोते, पोतियों का विवाह देख लूं फिर मैं आपके साथ जरूर चलूंगा।
संत ने इस बार भी किसान की बात में हामी भर दी। कुछ वर्षो के बाद फिर से संत आए तो उन्होंने देखा कि वृद्ध किसान के घर के बाहर एक कुत्ता बैठा है।
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संत ने अपने योगबल से जान लिया कि वृद्ध किसान की मृत्यु हो गई है और अब उसने इस कुत्ते के रूप में नया जन्म लिया है। मृत्यु तक रिश्तों के मोह में पड़े रहने से उसे कुत्ते का जन्म मिला है।
संत ने योगबल से कुत्ते को उसके पूर्वजन्म की याद दिलाई और उसे कहा की क्या तुम्हे अब मेरे साथ चलना है? तो वह बोला मेरे पड़पोते, पड॒पोतियां अभी नादान हैं और आजकल जमाना भी बहुत खराब है, इस वजह से मुझे उनकी रखवाली करनी है। वो थोड़े समझदार हो जाएं फिर में आपके साथ चलूंगा।
संत हंसकर बोले “अब नहीं आउंगा क्योंकि तुम फिर कोई बहाना खोज लोगे।”
इस कहानी का सार ये है की संसारी जीव कभी भी अपने परिवार के मोह से मुक्त नहीं हो पाता है। इंसान पूरा जीवनकाल अपने परिवार के प्रति दायित्वों को निभाता है। लेकिन जब वह अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर होता है, तब भी वो रिश्तों के मोह में बंधा रहता है।
इंसान को अपने खुद के लिए इतना तो करना ही चाहिए कि कम से कम वृद्धावस्था में रिश्तों का मोह त्यागे और ईश्वर का नाम स्मरण कर मोक्ष का रास्ता चुने।
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