परिस्थितियों का गुलाम – Moral Short Story In Hindi
हर इंसान परिस्थितियों का गुलाम होता है । वो जिस परिस्थिति में रहता है वो उसी में ढल जाता है । इस कहानी ( परिस्थितियों का गुलाम – Moral Short Story In Hindi ) में भी ऐसा ही कुछ होता है ।
पुराने समय की बात है । एक दिन राजा अपने मंत्री के साथ अपने राज्य का हिलचाल देखने के लिए निकलते है । वो देखते है की एक किसान पथरीली और ऊबड़-खाबड़ वाली जमीन पर गहरी नींद से सो रहा था ।
उस किसान को देखकर राजा अपने मंत्री से कहते है की जरा इसे देखो , ये बिचारा इस असुविधापूर्ण स्थिति में भी कितनी शांति से सो रहा है और एक हम है जो की इतनी अच्छी सुविधाएं के बावजूद भी अगर थोड़ी भी अड़चन आयी तो ठीक से सो नहीं पाते है ।
मंत्री ने कहा , महाराज ये किसान अब इस परिस्थितियों में ढल गया है इसलिए वो अच्छे से सो रहा है । अब उसने अपनी इसी Life को Accept कर लिया है । मनुष्य का शरीर बहुत ही कठोर होता है , उसे जैसी व्यवस्था मिलती है वैसा ही वो अपने आप को उन परिस्थितियों में ढाल देता है ।
राजा ने अपने मंत्री से कहा की मुझे ये बात सच नहीं लगती है । राजा ने कहा की हमें इसकी परीक्षा लेनी होगी । उस किसान की परीक्षा लेने के लिए वो उसे अपने साथ राजमहल में ले जाते है ।
यहाँ पर राजमहल में उसके लिए हर तरह की सुख सुविधा की व्यवस्था की जाती है । उस किसान को बहुत ही अच्छा नरम बिस्तर सोने के लिए देते है । किसान भी बड़ी ख़ुशी के साथ राजसी ठाठ-बाठ का आनंद लेने लगा ।
इसी तरह किसान को राजमहल ने आये हुए दो महीने हो गए । अब किसान भी इस सब सुख सुविधाओं का गुलाम बन गया था । उसी बिच एक दिन मंत्री ने चुपके से किसान के बिस्तर में कुछ पत्ते और तिनके रख दिए ।
किसान को तो अब इन सब सुख सुविधाओं की आदत लग गयी थी । इसलिए वो बिस्तर में ऐसे पत्ते और तिनके रखने की वजह से सारी रात करवटें बदलता रहा । उसकी नींद भी ठीक से पूरी नहीं हो पायी ।
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अगली सुबह राजा और मंत्री उसके पास उसे मिलने के लिए पहुंचे । उस किसान ने राजा से शिकायत की कि उसके बिस्तर में कुछ खुचने वाली चीजें हैं और इस चीज़ो की वजह से उसे पूरी रात ठीक से नींद भी नहीं आयी ।
किसान की बात सुनकर मंत्री ने तुरंत राजा से कहा की देखा महाराज ये वही किसान है जो की पथरीली भूमि पर भी गहरी नींद में आराम से सो रहा था किन्तु ये अब दो महीने में तो राजमहल के विलासितापूर्ण जीवन का आदी हो गया है ।
अब तो इसे पत्ते औए तिनके भी चुभने लगे है । देखा महाराज मेरी कही हुई बात सच निकली ना की मनुष्य परिस्थितियों के अनुसार ढल जाता है और वो परिस्थितियों का गुलाम बन जाता है ।
राजा ने अपने मंत्री से कहा हां तुम ने मुझे उस दिन सच बताया था । इंसान वाकही परिस्थितियों का गुलाम होता है ।
Moral : हमें अपने शरीर को ज्यादा सुख-सुविधाओं का आदि नहीं बनाना चाहिए क्योकि हम वैसे ही बन जाते है जैसा हमने अपने आप को बनाया होता है । अगर हमें जरूरियात से ज्यादा सुख – सुविधाएं मिल जाती है तो हम कभी भी उन सुख – सुविधाएं वाली परिस्थितियों के बिना रह नहीं पाते है ।
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