पुरस्कार का हकदार – Short Inspirational Story In Hindi
इस कहानी (पुरस्कार का हकदार – Short Inspirational Story In Hindi) में संत अपने विद्यार्थियों में से कौन सेवा भाव को सबसे बेहतर ढंग से समझता है, ये जानने के लिए एक प्रतियोगिता रखते है और फिर उस प्रतियोगिता के पुरस्कार का असली हकदार कौन है वह बताते है। दरअसल जो विजेता होता है वह उस प्रतियोगिता में सम्मिलित ही नहीं हुआ था तो फिर संत ने उसे कैसे विजेता घोषित किया जानने के लिए आपको पढ़नी पड़ेगी ये कहानी।
एक संत ने विद्यालय आरंभ किया। इसका प्रमुख उद्देश्य था संस्कारी युवक – युवतियों का निर्माण जो समाज के विकास में सहभागी बन सके। एक दिन उन्होंने वाद – विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया। इस वाद – विवाद प्रतियोगिता का विषय था “जीवो पर दया एवं प्राणिमात्र कि सेवा” ।
निर्धारित तिथि को प्रतियोगिता आरंभ हुई। किसी छात्र ने सेवा के लिए संसाधनों कि महत्ता पर बल देते हुए कहा कि हम दुसरो कि तभी सेवा कर सकते है जब हमारे पास उसके लिए पर्याप्त संसाधन हो। प्रतिभागियों ने सेवा के विषय में शानदार भाषण दिए।
आखिर में जब पुरष्कार देना का समय आया तो संत ने एक ऐसे विद्यार्थी को चुना , जो मंच पर बोलने के लिए ही नहीं आया था। ये देखकर अन्य विद्यार्थियों और कुछ शैक्षिक सदस्यों में रोष के स्वर उठने लगे।
संत सभी को शांत कराते हुए बोले , मेरे प्यारे मित्रो और विद्यार्थियों, आप सबको शिकायत है कि मैने ऐसे विद्यार्थी को क्यों चुना , जो प्रतियोगिता में सम्मिलित ही नहीं हुआ था। दरअसल में जानना चाहता था कि हमारे विद्यार्थियों में कौन सेवा भाव को सबसे बेहतर ढंग से समझता है।
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इसलिए मेने प्रतियोगिता स्थल के द्वार पर एक घायल बिल्ली को रख दिया था। आप सब उसी द्वार से अंदर आए, पर आप सभी में से किसी ने भी उस बिल्ली कि ओर आँख उठाकर नहीं देखा।
यह सिर्फ अकेला ही ऐसा प्रतिभागी था, जिसने वहा रूककर उसका उपचार किया। सेवा सहायता डिबेट का विषय नहीं, जीवन जीने कि कला है। जो अपने आचरण से शिक्षा देने का साहस न रखता हो, उसके वक्तव्य कितने भी प्रभावी क्यों न हो, वह पुरस्कार पाने के योग्य नहीं है।
इस तरह से संत ने पुरस्कार का असली हकदार चुना और सभी विद्यार्थियों और वहा पर मौजूद सभी लोगो को जीवन जीने कि कला भी सिखाई।
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