Short Akbar Birbal Story In Hindi – एक गवाही ऐसी भी
अकबर और बीरबल की इस कहानी ( Short Akbar Birbal Story In Hindi – एक गवाही ऐसी भी) में बीरबल अपनी चालाकी से असली चोर को पकड़ता है।
एक ब्राह्मण ने दिल्ली की सैर करने का निश्चय किया। वह दिल्ली में किसी को पहचान नहीं पा रहा था। एक दिन, एक दयालु व्यापारी ने उसे अपने घर में मेहमान बनाने का स्नेह दिखाया।
व्यापारी ने उसे खाना खिलाया और रात के लिए एक कमरे में ठहरने की इजाजत दी। उस वक्त, दिल्ली में अत्यधिक आतंकपन होने के कारण सड़कों पर दिन-रात जवानों की पहरें लगी रहती थीं। इन पहरेदारों में से एक पहरेदार आत्म-चोर भी था। शहर में घूमकर वह छोटी-मोटी चोरीयों की व्यापारिकी करता रहता था।
एक रात, वह आत्म-चोर सिपाही बनकर व्यापारी के घर में प्रवेश कर आया, जहाँ ब्राह्मण ठहरा हुआ था। वह सिपाही ने उसी कमरे में जाकर जाल बिछाया, जिसमें ब्राह्मण सो रहे थे।
कमरे में उस वक्त मालिक का एक संदूक रखा हुआ था। सिपाही ने उस संदूक को उठाया और ले जाने लगा। आवाज सुनकर ब्राह्मण जाग उठा।
सिपाही को देखते ही वह भागते हुए सिपाही को पकड़ लिया।
सिपाही ने ब्राह्मण को लालच देकर कहा, “तुम मुझे जाने दो, मैं इस संदूक से जो कुछ निकालूँगा, उसका आधा हिस्सा तुझे दे दूंगा।”
ब्राह्मण ने सिपाही की बात को माना नहीं। उसने मालिक को जगाने के लिए शोर मचाने का प्रयास किया, लेकिन सिपाही ने उसका मुंह बंद करके स्वयं शोर करना शुरू कर दिया। इसके परिणामस्वरूप व्यापारी जाग उठे।
सिपाही ने बोला, “यह आदमी तुम्हारे संदूक को लेकर भाग रहा था। मैंने उसे पकड़ लिया है।”
सिपाही ने चोर को पकड़ रखा था, इसलिए मामला दरबार में पहुँचा।
व्यापारी, ब्राह्मण और सिपाही सब बीरबल के सामने प्रस्तुत हुए। बीरबल ने सबसे पहले अपने विश्वासनीय व्यक्ति को बुलवाया। उन्होंने उसके कान में कुछ कहकर उसे बाहर भेज दिया।
इसके बाद उन्होंने सिपाही और ब्राह्मण को अपने पास बुलाया और दोनों से पूछताछ की।
कुछ समय बाद, बीरबल द्वारा भेजे गए आदमी दौड़ते हुए आया और बीरबल को अपने बेटे की समस्या का बयान किया। उसका बेटा महादेव के मंदिर में दर्शन के बाद बेहोश हो गया था और उसे तुरंत हकीम के पास ले जाना था। उसमे दो आदमियों की मदद की आवश्यकता होती है।
बीरबल ने कहा, “तुम यहीं खड़े रहो, मुझे तुमसे काम है। मैं इन दोनों को वहां ले जाने वाला हूँ।”
ब्राह्मण और सिपाही मंदिर पहुँचे और वहां बेहोश पड़े लड़के को उठा लिया। रास्ते में, ब्राह्मण ने सिपाही से कहा, “तुमने ही उस व्यापारी के घर में जाल बिछाया था। तुम ही संदूक लेकर भाग रहे थे। मैंने तुम्हें रोका था। फिर तुमने क्यों मुझे आरोपित किया?”
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सिपाही ने कहा, “मैंने तुझसे चोरी के माल में से आधा हिस्सा देने की प्रस्तावना की थी, लेकिन तूने नहीं माना। अब तुझे सजा मिलेगी।”
ब्राह्मण और सिपाही दोनों दरबार में पहुँचे। बीरबल ने सिपाही और ब्राह्मण को सच बोलने की आदेश दी। दोनों ने आपसी आरोपों में जुटे रहने का आरोप लगाते रहे।
बीरबल ने पूछा, “अगर तुम दोनों ऐसे ही बात करते रहोगे तो मैं असली चोर को कैसे पहचानूंगा?”
बीरबल के इस प्रश्न से बेहोश पड़े लड़के ने अचानक अपनी होशियारी व्यक्त की और उठकर खड़ा हो गया। उसने बीरबल से कहा, “श्रीमान, असली चोर तो यह सिपाही है। उसने ब्राह्मण को झूठा आरोप लगाया है।”
लड़का ने घटना का वर्णन किया और सिपाही और ब्राह्मण के बीच हुई बातचीत की उलझी हुई घटना का भी पर्दाफाश किया।
इसके बाद बीरबल ने ब्राह्मण को आदरपूर्वक मुक्त किया और सिपाही को उसकी आपराधिकता के आधार पर कारावास में भेज दिया।
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