Short Stories For Kids In Hindi – Short Kids Stories
इस Post (Short Stories For Kids In Hindi) में बच्चो के लिए कुछ Short Stories है।
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कछुआ और लोमड़ी की दोस्ती
एक समझदार मित्र की सहायता से जीवन के बड़े से बड़े संकट को दूर किया जा सकता है। इस कहानी (कछुआ और लोमड़ी की दोस्ती ) में भी कुछ ऐसा ही होता है। लोमड़ी अपनी समझदारी से अपने दोस्त कछुए को बचाती है।
बहुत समय पहले की बात है। कछुआ और लोमड़ी में बहुत अच्छी दोस्ती थी। कछुआ एक तालाब में रहता था और लोमड़ी तालाब के पास ही एक मांद में रहती थी।
कछुआ और लोमड़ी ये दोनों अपने खाली समय में एक – दूसरे के पास जाकर बैठते और अपना सुख – दुःख बाटते। एक दिन लोमड़ी और कछुआ तालाब के किनारे बैठे हुए गप – शप कर रहे थे, तभी वहा पर एक तेंदुआ आ गया।
दोनों तेंदुए को देखकर अपनी – अपनी जान बचाने के लिए घर की तरफ भागे। लोमड़ी सरपट दौड़कर अपनी मांद में छिप गयी।
कछुआ अपनी चाल से तालाब की तरफ भाग रहा था परंतु उसके तालाब तक पहुंचने से पहले ही तेंदुए ने उसे पकड़ लिया और उसके खोल पर प्रहार किया परंतु कछुआ के खोल पर तेंदुए के हमले का कोई असर नहीं हुआ।
पास में ही लोमड़ी अपनी मांद में से सब देख रही थी। वह किसी भी तरह अपने मित्र की जान बचाना चाहती थी। लोमड़ी के चालाक दिमाग में एक युक्ति सूझी।
वह तेंदुए से बोली – तेंदुआ भाई! इस कछुए का खोल बहुत मजबूत है। यह इस तरह नहीं टूटेगा। आप इसे तालाब के पानी में डाल दो, पानी में इसका खोल गल जायेगा, तब आप इसे आराम से खा सकते हो।
तेंदुए को लोमड़ी की बात अच्छी लगी और उसने कछुए को तालाब के पानी में डाल दिया। अब क्या था कछुआ जो चाहता था वो उसे मिल गया। कछुआ धीरे से तालाब के अंदर छिप गया।
इस तरह लोमड़ी ने चालाकी से उसके दोस्त की मदद की और उसकी जान बचा ली।
Moral : एक समझदार मित्र की सहायता से जीवन के बड़े से बड़े संकट को दूर किया जा सकता है।
- गधो का सत्कार
धोबी गधे का इस्तेमाल करते है ये बात तो हम सभी को पता है, लेकिन धोबी ने कबसे गधो का इस्तेमाल करना शुरू किया और कैसे किया, ये आप में से कही सारे लोग नहीं जानते होंगे। इस कहानी में यही बताया गया है की धोबी ने गधे का इस्तेमाल करना कबसे शुरू किया।
बहुत समय पहले की बात है। एक जंगल में गधे ही गधे रहते थे। पूरी आजादी से रहते, भरपेट खाते – पीते और मौज करते थे। गधो के लिए वह जंगल स्वर्ग की तरह था। एक दिन एक लोमड़ी को मजाक सुझा। उसने मुँह लटकाकर गधो से कहा की मै चिंता से मरी जा रही हु और तुम इस तरह मौज कर रहे हो। पता नहीं कितना बड़ा संकट सिर पर आ पंहुचा है!
गधो ने उत्सुकता से पूछा – दीदी, भला क्या हुआ, बात तो बताओ! लोमड़ी ने कहा – मै अपने कानो से सुनकर और आँखों से देखकर आई हु, जंगल की झील की मछलियों ने एक सेना बना ली है और वे अब तुम्हारे ऊपर चढ़ाई करने वाली है।
उनके सामने तुम्हारा ठहर सकना कैसे संभव होगा। इसलिए तुम्हारे लिए बहुत चिंतित हु! गधे असमंजस में पड़ गए। उन्होंने सोचा, व्यर्थ जान गंवाने से क्या लाभ, चलो कही अन्यत्र चलो!
सारे गधे जंगल छोड़कर गांव की ओर चल पड़े। सबके दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि इससे पहले कि मछलिया हम पर हमला करे, जितना दूर हो सके निकल जाने में ही भलाई है।
वे सब लोमड़ी को शुक्रिया भी कह रहे थे कि अगर उसने न बताया होता तो हमारा बचना भी मुश्किल ही था। जब ये सारे गधे गांव कि तरफ पहुंचने लगे तो सबसे पहले धोबियो की नजर उन पर गई।
इस प्रकार घबराए हुए गधो को देखकर गांव के धोबी ने उनका खूब सत्कार किया। गधो ने अपनी पूरी आपबीती धोबियो को सुनाई। धोबियो ने अपने छप्पर में गधो को आश्रय दिया और गले में रस्सी डालकर खूटे में बांधते हुए कहा – डरने की ज़रा भी जरुरत नहीं, उन दुर्ष्ट मछलियों से मै निपट लूंगा।
तुम मेरे बाड़े में कपड़ो का बोझ धो देना। गधो की घबराहट तो दूर हुई पर अपनी मूर्खता की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी। कहा जाता है की तभी से धोबी गधे का इस्तेमाल करने लगे।
- गड्डा खोदोगे तो गिरोगे
दुसरो के लिए गड्डा खोदने वाला एक दिन खुद उसमे गिर जाता है। बुराई को कभी भी बुराई से जीता नहीं जा सकता है। बुराई को जीतने के लिए हमेशा अच्छाई ही काम आती है। इस कहानी (गड्डा खोदोगे तो गिरोगे) में उसी के बारे में बताया गया है।
एक कुए में गंगाधर नाम का मेंढको का मुखिया रहता था। उसके परिवार में 10 सदस्य थे। मुखिया किसी तरह से अपने परिवार के लिए भोजन इकठ्ठा करता था। भोजन की व्यवस्था करने के लिए उसको दूर – दूर तक जाना पड़ता था।
एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे कुए में वह भटकता रहता था। उसके पड़ोस में रहने वाले मेढ़क बहुत दुष्ट प्रवृति के थे और वह इस बात से परेशान था कि उसके पडोसी मेंढक उसके परिवार के मेंढ़को के भोजन को खा जाते है।
गंगाधर रिश्तेदारों और पड़ोसियों से क्षुब्ध होकर उनको ठिकाने लगाने कि युक्ति सोचने लगा। एक दिन वह कुए के बाहर इस बारे में सोच ही रहा था तो उस को प्रियदर्शन नाम का काला सांप दिखाई दिया। Read More..
- मूर्ख बगुला
कभी भी किसी कि सलाह मानने से पहले उसके दूरगामी परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए। क्योकि ये जरुरी नहीं है कि आप जिसकी बात मान रहे हो वो आपका हितचिंतक ही हो। कई बार हम किसी कि सलाह मान लेते है और बाद मे हमें पता चलता है कि जिसने हमें ये सलाह दी थी वो तो हमारा शत्रु था और उससे हम अपना खुद का ही नुसकान कराते है। इस कहानी मे भी कुछ ऐसा ही होता है।
किसी वन मे एक बहुत बड़ा वृक्ष था। उस पर बगुलों के अनेक परिवार रहते थे। उसी वृक्ष के कोटर मे एक काला सर्प भी रहता था। अवसर मिलने पर वह बगुलों के उन बच्चो को मारकर खा जाया करता था। जिनके पंख भी नहीं उगे होते थे।
इस प्रकार बड़े आनंद से उसका जीवन व्यतीत हो रहा था। यह देखकर बगुले बड़े खिन्न रहते थे, लेकिन इनके पास कोई उपाय भी नहीं था। दुखी होकर एक दिन एक बगुला नदी किनारे जाकर बैठ गया। रो रोकर उसकी आँखे लाल हो चुकी थी। Read More..
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