कल्पना की रस्सी – Short Story With Moral In Hindi
कभी – कभी लोग कल्पना की रस्सी से ऐसे बंध जाते है की सही और गलत का अंतर भी भूल जाते है । ये कहानी ( Short Story With Moral In Hindi – कल्पना की रस्सी ) इसी के बारे में है ।
एक व्यपारी था । उसके पास पांच ऊंट थे । वो उन ऊँटो को लेकर शहर – शहर घूमता था और कारोबार करता था । एक दिन कारोबार के लिए वो कही गया था पर वापिस घर लौटने के समय बहुत देर हो गयी और रात पड़ गयी । उसने सोचा की में यहाँ किसी धर्मशाला में रुक जाता हु ।
वो धर्मशाला ढूंढने लगा और उसे वहा पर एक धर्मशाला भी मिल गयी । उसने सोचा की में बाहर ऊंट बाँध कर आराम से सो जाता हु । वो धर्मशाला के बाहर अपने ऊंट बांधने लगा । चार ऊँटो को उसने बाँध लिया लेकिन जब वो पांचवा ऊंट बाँधने गया तब उसने देखा की रस्सी अब खतम हो गयी है ।
तभी वहा से एक तपस्वी निकल रहे थे । उन्होंने व्यपारी को परेशान देखकर उससे पूछा की आपको क्या परेशानी है ? उस व्यपारी ने कहा की मुझे धर्मशाला के अंदर जाकर आराम करना है लेकिन इस पांचवे ऊंट को बांधने के लिए मेरे पास रस्सी नहीं है ।
उस तपस्वी ने जब व्यपारी की समस्या सुनी तब वो हसने लगे और कहा की जैसे आपने इन चार ऊँटो को बांधा है वैसे ही आप ये पांचवे ऊंट को भी बाँध दो । तपस्वी की बात सुनकर व्यपारी हैरानी के साथ बोला , लेकिन रस्सी ही तो ख़तम हो गयी है ।
तपस्वी ने कहा , मेने कब कहा की तुम इसे रस्सी से बांधो , तुम इस पांचवे ऊंट को कल्पना की रस्सी से भी तो बाँध सकते हो । व्यपारी ने उस तपस्वी की बात मान ली और उस पांचवे ऊंट के गले में काल्पनिक रस्सी का फंदा डालने जैसा नाटक किया और उसका दूसरा सिरा पेड़ से बाँध दिया ।
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जैसे ही व्यपारी ने ये नाटक किया की वो पांचवा ऊंट आराम से बैठ गया । व्यपारी अब धर्मशाला के अंदर चला गया और उसने पूरी रात आराम से नींद ली । सुबह उठकर जब उसने सारे ऊँटो को खोला तब वो चार ऊंट खड़े हो गए और चलने के लिए तैयार भी हो गए लेकिन ये पांचवा ऊंट नहीं उठा ।
व्यपारी को देर हो रही थी इसलिए उसको इस पांचवे ऊंट पर बहुत गुस्से आ रहा था । वो उसे मारने लगा लेकिन फिर भी वो पांचवा ऊंट उठने के लिए तैयार ही नहीं था । इतने में वहा पर वो तपस्वी आ गए । ऊंट को ऐसे मारते हुए देख कर तपस्वी ने व्यपारी से कहा की तुम बिचारे बेजुबान जानवर को क्यों मार रहे हो ?
व्यपारी ने कहा की मुझे बहुत देर हो रही है और ये पांचवा ऊंट उठ नहीं रहा है । तपस्वी ने व्यपारी से कहा की, अरे भाई कल तुमने इस ऊंट को बांधा था , आज तुम्हे इसे खोलना होगा , बिना खोले वो कैसे उठेगा । व्यपारी ने कहा अरे मेने इसे हकीकत में थोड़ी बांधा था , मेने तो सिर्फ बाँधने का नाटक किया था ।
तपस्वी ने कहा कल जैसे तुमने बाँधने का नाटक लिया था वैसे ही आज तुम खोलने का नाटक करो । उस तपस्वी की बात सुनकर व्यपारी ने ऊंट को खोलने का नाटक किया । ऊंट तुरंत खड़ा हो गया ।
Moral : कही लोग परंपराओं की रस्सी से बंधे रहते है और सही गलत का अंतर भी भूल जाते है ।
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